Russia Ukraine War का असर अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ारो पर दिखना शुरू हो गया है। सोमबार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 139 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई जो की कच्चे तेल की कीमतों में 2008 के सबसे बड़ा उछाल है। जिसके चलते वैश्विक बाजारों में जोरदार गिरावट देखने को मिल रही है।

कच्चे तेल की कीमतों में उछाल में सबसे बड़ा कारण रूस और यूक्रेन के बीच में चल रहा है। अमरीका और यूरोप के देशो ने रूस से कच्चे तेल को खरीद नहीं करने का मन बना लिया है। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की डिमांड के मुकाबले सप्लाई काफी कम रह जाएगी जिसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ गया है। तेल की कीमतों में 2008 के बाद यह सबसे बड़ा उछाल है।

एशियाई बाजारों पर असर

Russia Ukraine War के और अधिक तीव्र होने की रिपोर्ट के रूप में सभी एशियाई बाजारों में भी गिरावट आई थी। सेंसेक्स आज 1,600 अंक नीचे, जापान का निक्केई 225 850 अंक या 3.27 प्रतिशत नीचे था। हांगकांग का सूचकांक हैंग सेंग 700 अंक से अधिक और ऑस्ट्रेलिया का एएसएक्स ऑल ऑर्डिनरीज प्रतिशत से अधिक नीचे था। भारत में सोने की कीमतें भी 53,000 रुपये के स्तर को पार कर चुकी हैं ।

अमेरिका पर प्रभाव

इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका में, एक ऑटोमोबाइल एसोसिएशन, AAA के अनुसार, रविवार को गैसोलीन के एक गैलन की औसत कीमत $4.009 हो गई, जो जुलाई 2008 के अंत के बाद सबसे अधिक है। उपभोक्ता एक सप्ताह पहले की तुलना में 40 सेंट अधिक भुगतान कर रहे हैं, और 57 एक महीने से अधिक समय पहले सेंट

भारत में कच्चे तेल की कीमत

सुबह 10 बजे तक, भारत में कच्चे तेल की कीमतें 12 प्रतिशत बढ़कर 125 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गईं। मनीकंट्रोल के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय रुपये में यह 9,609 रुपये के करीब था।

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“कच्चे तेल की कीमतों ने 2020 के मध्य के बाद से अपना उच्चतम साप्ताहिक लाभ दर्ज किया। ब्रेंट की कीमतों में 21% और WTI ने 26% की बढ़त दर्ज की।”

तेल सप्लाई पर प्रतिबंध की तैयारी

अमरीका और यूरोपीय देश रूस पर पूरी तरह से युद्ध को बन्द करने के लिए दबाब बना रहे है इसी के चलते अमरीका के बिदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपने सहयोगियों से बात की। इससे एक दिन पहले राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह बात राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक की थी।

रूस दूसरा सबसे बड़ा तेल उद्पादक

रूस पुरे विश्व का सबसे बड़ा दूसरे नंबर का तेल उद्पादक देश है। यूरोप की रिफाइनरियों में 20 फीसदी कच्चा तेल रूस से ही जाता है। ऐसे में तेल पर प्रतिबन्ध लगने से रूस की अर्थ व्यवस्था पर बहुत बड़ा असर पड़ेगा। जिसका दबाब बनाने की पूरी कोशिश की जा रही है। ग्लोबल उत्पादन में विश्व का 10 फीसदी कॉपर और 10 फीसदी एल्युमीनियम रूस बनाता है।

भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक

भारत पुरे विश्व में कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयतक देश है। भारत 85 फीसदी तेल बहार के देशो से देशो से खरीदता है। बाहर के देशो से आयतक कच्चे तेल की भारत को अमेरिकी डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर के मजबूत होने से घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम प्रभावित होते हैं यानी ईंधन महंगे होने लगते हैं। अगर कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो जाहिर है भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। एक रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि भारत का आयात बिल 600 अरब डॉलर पार पहुंच सकता है।

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